Gudi Padwa (गुड़ी पड़वा) – यह त्योहार क्यों है इतना खास ? क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं ? जानिए सब कुछ

Gudi Padwa (गुड़ी पड़वा) – क्या है गुड़ी पड़वा नामक त्योहार ?

सनातन धर्म में प्रतिवर्ष अनेक पर्व मनाया जाते हैं और हर वर्ष सनातन धर्म से जुड़े लोग अनेक हर्ष और उल्लास के साथ इन पर्वों का स्वागत भी करते हैं । इन्हीं पर्वों में एक है गुड़ी पड़वा । गुड़ी पड़वा एक ऐसा पर्व है जिसकी शुरुआत के साथ ही सनातन धर्म की अनेक कहानियां जुड़ी हुई है। भारत के महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा को विशेष रूप से मनाया जाता है । 9 दिन तक चलने वाले इस त्यौहार में पूजा और विशेष तरह के प्रसाद आदि का बहुत महत्व है । इस आर्टिकल में हम गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) से जुड़े अनेक तरह की कथाएं, उससे जुड़ी परंपराएं, महत्व और रीति रिवाज से अवगत होते हैं ।

Gudi Padwa गुड़ी पड़वा

कब मनाया जाता है गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) ?

गुड़ी पड़वा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नामक त्योहार, चैत्र महीने के पहले दिन मनाया जाता है । गुड़ी पड़वा में गुड़ी का मतलब होता है विजय और पड़वा का मतलब होता है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष का पहला दिन । गुड़ी पड़वा नामक पर्व को वर्ष प्रतिपदा, उगादि एवं युगादि के नाम से भी जाना जाता है ।

गुड़ी पड़वा से जुड़ी पौराणिक कथाएं ?

पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग में अर्थात रामायण काल में जब रावण ने मां सीता का हरण कर लिया था और जब भगवान श्री राम को यह पता चला की लंका पति रावण ने मां सीता का हरण कर लिया है तो प्रभु श्री राम मां सीता को खोजते हुए दक्षिण भारत पहुंचे । उस समय दक्षिण भारत में राजा बाली का शासन हुआ करता था । और जब प्रभु श्री राम दक्षिण भारत पहुंचे तब उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई । प्रभु श्री राम ने सुग्रीव से मां सीता को ढूंढने के संदर्भ में मदद मांगी थी ।

परंतु सुग्रीव ने वहां पर चल रहे राजा बाली के कुशाषण के बारे में अवगत कराया और मदद कर पाने में अपनी असमर्थता जाहिर की । इसके बाद भगवान श्री राम ने राजा बाली का वध करके दक्षिण भारत के लोगों को उसके कुशाषण शासन से मुक्त कराया । जिस दिन प्रभु श्री राम ने राजा बालि का वध किया और वहां की जनता को राजा बाली के कुशाषण से मुक्त कराया, वह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का था । ऐसा माना जाता है कि तभी से उस दिन गुड़ी यानी विजय पताका फहराई जाती है । 

गुड़ी पड़वा पर लोग क्या करते हैं ?

गुड़ी पड़वा के दिन लोग घरों को आम के पत्तों से सजाते हैं । आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र व कर्नाटक में इसे लेकर के काफी हर्षोल्लास रहता है । सृष्टि के निर्माण का यह दिन एक भारतीय के लिए बेहद अहम है । सनातन धर्म के अनुसार 12 महीनों के नाम कुछ इस प्रकार से हैं – चैत्र, बैसाखी, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। तो अगर हम भारतीय संस्कृति के अनुसार नव वर्ष की बात करें तो हमारा कैलेंडर गुड़ी पड़वा से ही शुरू होता है ।

एक धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था । इसीलिए गुड़ी पड़वा, नवसंवत्सर भी कहलाता है । इसके अलावा महान गणितज्ञ श्री भास्कराचार्य जी ने भी इसी तिथि पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक के दिन, महीने और वर्ष की रचना करते हुए पंचांग भी रचा था । 

कुछ विद्वानों की माने तो शालिवाहन नाम के कुम्हार के बेटे को शत्रु बहुत परेशान करते थे । लेकिन अकेला होने के कारण वह उनका विरोध करने में सक्षम नहीं था । और तब जाकर के उसने एक युक्ति निकाली । और अपने शत्रु की सेना से लड़ने के लिए मिट्टी के सैनिकों का निर्माण किया । शालिवाहन ने मिट्टी की एक सेना बनाकर उनके ऊपर पानी छिड़क दिया और फिर उन सैनिकों में उसने प्राण फूंक दिए ।

ऐसा माना जाता है कि जब शत्रु आए तो कुमार के बेटे ने जिस सेना को बनाया था , उसी सेना के साथ मिलकर उसने शत्रु के साथ युद्ध किया और साथ ही विजय भी प्राप्त की । तब से शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ । इस दिन से महाराष्ट्र में मराठी पंचांग के अनुसार नया साल आरंभ हो जाता है । इसका पहला महीना चैत्र – चैतन्य यानी की खुशहाली का होता है । हिंदू कैलेंडर के अनुसार आखिरी महीना फाल्गुन का होता है । फाल्गुन के महीने में होली का त्यौहार मनाया जाता है । बहुत सारी सुखी लड़कियां जलाई जाती हैं ।चैत्र के महीने से पेड़ों पर नए-नए पत्ते आने शुरू हो जाते हैं । इसलिए भी इस महीने को बेहद खास माना जाता है । आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी इसे नए साल के रूप में मनाया जाता है ।

गुड़ी पड़वा पर क्या है विशेष प्रसाद का महत्व ?

गुड़ी पड़वा पर्व को लेकर के जहां अलग-अलग प्रकार की कथाएं प्रचलित हैं । वहीं आंध्र प्रदेश में गुड़ी पड़वा के अवसर पर इस दिन विशेष प्रकार का प्रसाद भी वितरित किया जाता है । ऐसा कहा जाता है कि जो भी बिना खाए पिए इस प्रसाद को ग्रहण करता है वह सदैव निरोगी रहता है । बीमारियां उससे दूर रहती हैं । 

भारत के कई राज्यों में इस पर्व को 9 दिनों तक विशेष रूप से ढेर सारे विधि विधान और पूजा के साथ मनाने का चलन है । इस उत्सव का समापन रामनवमी के दिन होता है ।  चैत्र माह में आने वाले नवरात्रि को वासंतिक नवरात्री और चैत्र नवरात्रि भी कहा जाता है । गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं । रंगोली बनाकर घरों को सजाते हैं ।

गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa)के दिन लोग अपने घर के मुख्य द्वार के आगे एक गुडी यानी झंडा रखते हैं । गुड़ी के ऊपर नीम के पत्ते और बताशे दोनों लगाए जाते हैं और ऐसा करना बहुत शुभ माना जाता है । क्योंकि नीम से जिंदगी की सारी कड़वाहट दूर हो जाती है और बताशे से आने वाले जीवन में और मिठास भर जाती है । गुड़ी पड़वा के इस पर्व पर तरह-तरह के पकवान घर पर ही बनाए जाते हैं, जैसे कि श्रीखंड – पूड़ी , खीर पूड़ी या पूरनपोली आदि बनाए जाते हैं । इस पर्व पर लोग विशेष तौर पर पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं । औरतें नौवारी साड़ी या पठानी साड़ी पहन कर सजती सावर्ती हैं , जबकि पुरुष कुर्ता पजामा या धोती कुर्ता पहनते हैं । 

गुड़ी पड़वा की पूजा के लिए किन चीजों की आवश्यकता होती है ?

गुड़ी पड़वा की पूजा के लिए जिन चीजों की आवश्यकता होती है वह कुछ इस प्रकार से हैं – फूल, चांदी का कलश, तोरण रंगोली, आम के पत्ते, लाल कपड़ा, नीम के पत्ते, नारियल, नया ब्लाउज का पीस, बॉर्डर वाली साड़ी या फिर चुन्नी, बताशे या फिर बताशे की माला, गेंदे के फूल की माला, नीम के पत्तों की माला, मिठाई, छोटी सी चौकी और 7 फीट लंबी बांस की डंडी । 

कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa)?

गुड़ी पड़वा के दिन सुबह उठकर लोग सबसे पहले नीम का पत्ता खाते हैं । कहा जाता है कि इस पत्ते को खाने से शरीर की सब बीमारियां दूर हो जाती हैं । रंगोली और तोरण लगाने के बाद भगवान की पूजा की जाती है । इसके बाद गुड़ी लगाने की तैयारी की जाती है ।

सबसे पहले एक बांस के डंडे को लेकर उसे अच्छे से साफ कर लिया जाता है । उसके बाद उस बांस के डंडे के ऊपरी हिस्से में ब्लाउज का पीस या बॉर्डर वाली साड़ी लटकाई जाती है । उसके ऊपर आम के पत्ते, नीम के पत्ते, फूलों की माला और बताशे की एक माला एक साथ बांध दी जाती है । इसके बाद गुड़ी के ऊपर एक तांबे / पीतल या चांदी के कलश को रखा जाता है ।

कलश का मुख उल्टा करके बांस के ऊपरी हिस्से में फंसा दिया जाता है । कलश के ऊपर स्वास्तिक चिन्ह और हल्दी कुमकुम भी लगाया जाता है । इसके बाद दरवाजे के ऊपर, बाहर या बालकनी में पूर्व की दिशा में छोटी सी चौकी बिछाई जाती है । उस चौकी के ऊपर लाल कपड़ा बिछाया जाता है । उस लाल कपड़े के ऊपर एक नारियल और फूल रखा जाता है । इसके बाद कुछ लोग गुड़ी स्थापित करने के लिए एक गमले का इस्तेमाल करते हैं । और फिर गुड़ी के सामने मीठे पकवान का भोग लगाते हैं ।

कुछ लोग गुड़ी की पूजा पंडित के हाथों से करवाते हैं और कुछ लोग स्वयं से भी कर लेते हैं । गुड़ी पड़वा का त्योहार सब लोग मिलकर खुशी-खुशी मनाते हैं । अपने-अपने रिश्तेदारों के यहां जाकर उन्हें नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हैं । इस तरह से इस गुड़ी पड़वा नाम का त्योहार पूरे महाराष्ट्र में और साथ ही साथ पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । साथ ही शाम होने से पहले गुड़ी को उतारा जाता है और उस पर लगे बताशे की माला को पूरे परिवार के साथ बांटकर खाया जाता है ।

 

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