क्या चल रहा है लद्दाख में ? क्यों मचा है बवाल ? क्या है चीन के साथ जमीन का विवाद ? – Sonam Wangchuk & Pashmina March
पिछले महीने मार्च में सोनम वांगचुक के द्वारा 21 दोनों का उपवास रखा गया था । सोनम वांगचुक इस 21 दिनों के उपवास के दौरान सिर्फ पानी और नमक पर जीवित थे । सोनम वांगचुक एक एजुकेशनिस्ट हैं और साथ ही साथ क्लाइमेट एक्टिविस्ट भी हैं । सोनम वांगचुक मूलभूत रूप से दो बातों को लेकर अनशन पर बैठे हुए थे । सरकार से उनकी दो मुख्य मांगे हैं –
- पहली मांग यह है कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए ,और
- दूसरी मांग यह है कि वहां के ट्राइबल (जनजातीय) आबादी को ध्यान में रखते हुए लद्दाख को भारतीय संविधान के छठे शेड्यूल (6th Schedule of Indian Constitution) में शामिल किया जाना चाहिए।
इस पर सरकार का क्या रुख है ? Sonam Wangchuk & Pashmina March
वर्तमान में स्थिति यह है कि सरकार ने उनकी दोनों में से कोई भी मांग नहीं मानी है। सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) लगातार अपनी मांगों को लेकर सरकार के साथ लद्दाख में संघर्ष कर रहे हैं ।
इसी दरमियान उनके द्वारा एक बहुत बड़ा कदम लिया जाना था जिसके अंतर्गत 7 अप्रैल 2024 को लद्दाख में एक बहुत बड़ा मार्च निकलना था। इस मार्च का नाम पशमीना मार्च (Pashmina March) रखा गया था । लेकिन मामला इस वजह से गर्म हो गया है क्योंकि लद्दाख के प्रशासन ने धारा 144 लागू कर दी है और इसका साफ तौर पर मतलब यह है कि सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) अब 7 अप्रैल 2024 को पशमीना मार्च (Pashmina March) नहीं कर पाएंगे।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह मार्च चीन के बॉर्डर के पास होना था। पर सवाल यह उठता है कि सोनम वांगचुक चीन के पास ही पशमीना मार्क क्यों करना चाह रहे हैं ? साथ ही हम इस बात को भी समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर सरकार लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों नहीं दे रही है ?
क्यों मचा है बवाल ?
पुरे सोशल मीडिया में पशमीना मार्च को लेकर के एक अवेयरनेस फैलाई जा रही थी । एक पॉप्युलर पंपलेट या पर्चा सर्कुलेट किया जा रहा था जिसमें लोगों से 7 अप्रैल 2024 को रविवार के दिन पशमीना मार्च में भारी से भारी संख्या बल में सम्मिलित होने के लिए आवाहन किया जा रहा था । परंतु इससे पूर्व ही लद्दाख के प्रशासन के द्वारा वहां पर धारा 144 लगा दी गई है । आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यदि किसी भी जगह पर धारा 144 लगा दी जाती है तो वहां पर एक साथ चार या चार से अधिक लोग एकत्रित नहीं हो सकते हैं ।
लद्दाख के जिलाधिकारी संतोष सुखदेव का कहना है कि उन्हें लद्दाख के एसपी के द्वारा यह सूचना दी गई है कि लद्दाख में शांति भंग हो सकती है और इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने सीआरपीसी की धारा 144 को लागू कर दिया है । धारा 144 लगाते हुए प्रशासन ने इंटरनेट पर भी रोक लगा दिया है और शनिवार से लेकर के रविवार तक उस क्षेत्र में इंटरनेट पर सिर्फ 2G फैसिलिटी ही मौजूद होगी 3G, 4G या 5G जैसी सुविधाओं का उपयोग लोग नहीं कर पाएंगे । इसके अलावा और भी कई प्रकार के निर्देश जारी किए जा चुके हैं ।
पशमीना मार्च (Pashmina March) क्या है ?
एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक का कहना है कि चीन और चीन की आर्मी के द्वारा लद्दाख का वह क्षेत्र जिसमें की लद्दाख के लोग अक्सर पशुओं को चराने ले जाया करते थे, उस क्षेत्र पर चीन ने गलत तरीके से कब्जा कर लिया है । उनका कहना है कि वह हिस्सा भारत का था परंतु उसे चीन ने गलत तरीके से अपने कब्जे में कर लिया है । उनका कहना है कि यह क्षेत्र काफी बड़ा क्षेत्र है और यहां पर यह भी समझना अति आवश्यक है कि लद्दाख जैसे राज्य में जहां पर की तापमान वैसे ही बहुत कम होता है, तो ऐसे में वहां के ज्यादातर लोग पशुपालन करके ही अपना परिवार का लालन-पालन करते हैं. यह मार्च इसी बात को हाईलाइट करने के लिए निकल जाना था । जिस जमीन पर विवाद है उसे जमीन को वहां के लोग Changthang Pasture land कहकर पुकारते हैं ।
चीन के सीमा के पास ही क्यों निकालना है पशमीना मार्च? Sonam Wangchuk & Pashmina March
दरअसल जिस जमीन पर विवाद है उस जमीन पर चीन ने कब्जा कर लिया है (वहां के लोगों के अनुसार) तो ऐसे में चीन की सीमा के पास जहां पर की वह विवादित जमीन भी मौजूद है वहीं पर पशमीना मार्च निकालकर सोनम वांगचुक और उनसे जुड़े लोग यह दिखलाना चाहते हैं कि वह जमीन भारत का हिस्सा है और वे उसे हिस्से पर अपना हक जताने आए हैं ।
सोनम वांगचुक ने जब अपने 21 दिनों के उपवास को अंतिम रूप दिया तब उसके अगले दिन ही इस बात का ऐलान किया गया की 7 अप्रैल 2024 को पशमीना मार्च निकाला जाएगा । उनका कहना है कि जिस प्रकार से महात्मा गांधी ने दांडी मार्च निकाला था हमारा मार्च भी कुछ कुछ इस प्रकार का मार्च होगा ।
सोनम वांगचुक कहना है कि लद्दाख के अंदर उनकी जमीनों को दो तरीकों से लिया जा रहा है । उनका कहना है कि संविधान की धारा 370 को हटाए जाने के बाद बड़ी-बड़ी कंपनियों के द्वारा तकरीबन डेढ़ लाख वर्ग किलोमीटर (Km2) का क्षेत्र जो कि वहां के लोगों के लिए मूल रूप से जानवरों को चराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, उनसे छीना जा रहा है ।
वहीं उनका यह भी कहना है की दूसरी तरफ चीन ने गलत तरीके से जानवरों को चराये जाने वाले लगभग 4000 वर्ग किलोमीटर (Km2) एरिया को पिछले 5 सालों के अंदर कब्जा कर लिया है । और इसी वजह से सोनम वांगचुक का कहना है कि हम इस बात के खिलाफ प्रोटेस्ट करना चाहते हैं । सोनम वांगचुक का कहना है कि पशमीना मार्च में करीब करीब 10000 ऐसे लोग जो कि पशुपालन का काम करते हैं वह भी इस मार्च का हिस्सा बनने वाले हैं ।
मार्च निकलेगा या नहीं ?
सोनम वांगचुक का कहना है कि हमने जो शांतिपूर्ण मार्च निकालने का निर्णय लिया था उसको एक सुनियोजित तरीके से समाप्त करने की कोशिश की जा रही है । उनका कहना है की धारा 144 लागू करने का आर्डर वहां की प्रशासन को सीधा दिल्ली से मिला है । उनका यह भी कहना है कि 31 दिनों से लगातार हमने शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन किया और अब प्रशासन का कहना है कि हमारे मार्च से यहां की शांति खतरे में आ जाएगी ।
जेल भरो आंदोलन !
सोनम वांगचुक ने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा है कि प्रशासन को जेल भरो आंदोलन के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार से प्रशासन उनके द्वारा किए जाने वाले मार्च को रोकने का प्रयास कर रहा है वैसी स्थिति में मार्च में शामिल होने वाले ज्यादातर लोग जेल में जाने को तैयार हैं । उन्होंने चेतावनी देते हुए यह भी कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो आने वाले महीने में गांधी जी से सीख लेते हुए नॉन को-ऑपरेशन मूवमेंट भी चलाया जा सकता है ।
क्या समाधान किया जा सकता है इस मुद्दे का ?
इन तमाम मुद्दों के बीच हमारा यह मानना है कि भारत सरकार को बातचीत के जरिए जल्द से जल्द एक अच्छे वातावरण में इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करना चाहिए । चुकी लद्दाख काफी सेंसिटिव एरिया है और ऐसे में वहां पर अगर इस प्रकार की गतिविधियों होती रहेगी तो यह भारत के लिए भी अच्छा संदेश नहीं है।
जहां तक बात है सोनम वांगचुक की तो वह भारत के एक अच्छे नागरिक रहे हैं और उन्होंने अक्सर सरकार का साथ ही दिया है तो ऐसे में अगर सोनम वांगचुक जैसे बुद्धिजीवी लोग किसी मुद्दे को लेकर के चिंतित हैं तो सरकार को एक बार उनसे बात करके मामले को संभालने की या समाधान निकालने की कोशिश की जानी चाहिए ।
इन तमाम इन तमाम तथ्यों को ध्यान में रखते हुए बातचीत बहुत ही आवश्यक हो जाती है क्योंकि चीन का रुख भारत के प्रति कैसा रहा है इस बात से हम अनभिज्ञ नहीं है तो ऐसे में यह डर भी बनने लगा है कि कहीं इस स्थिति का चीन कोई नकारात्मक प्रभाव भारत पर डालने की कोशिश ना करे ।
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